हमें अपने गणतंत्र से कई शिकायतें हैं। मसलन, हर जगह भ्रष्टाचार का बोलबाला है। गरीबी और गैर-बराबरी है। देश की एक बहुत बड़ी आबादी की बुनियादी जरूरतें आज भी पूरी नहीं की जा सकी हैं। ये सारी बातें अपनी जगह वाजिब हैं। लेकिन अगर हम अपने नजरिए को थोड़ा फैलाएं, सारी दुनिया पर गौर करें और उन मुश्किल हालात को याद करें, जहां से हमने यात्रा शुरू की थी, तो शायद हमें खुद को उतना कोसने की जरूरत महसूस नहीं होगी।
अगर हम याद करें कि आज जिन बहुत-सी बातों को हम तयशुदा मानते हैं, वो 1947 में उतनी निश्चित नहीं थीं। मसलन, भारत अपनी एकता और अखंडता को कायम रख सकेगा, यहां एक स्थिर व्यवस्था बन सकेगी और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र का पूरी दुनिया के लिए एक मॉडल तैयार हो सकेगा, इन सबका तब सिर्फ सपना ही देखा जा सकता था। लेकिन आज ये सब हमारे सामने साकार रूप में मौजूद हैं। इस गणतंत्र के पूर्वजों ने जिस वैज्ञानिक और आर्थिक संरचना की नींव डाली, उसकी बदौलत भारत आज दुनिया की एक उभरती हुई आर्थिक ताकत है।
जाहिर है, समस्याएं अभी और भी हैं। बल्कि गंभीर समस्याएं हैं। कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जिनसे अक्सर हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। लेकिन यहां गौर करने की बात यह है कि इनमें से बहुत-सी समस्याएं हमारी पुरातन व्यवस्था और लंबी गुलामी का परिणाम हैं। इनका संबंध हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक विकासक्रम के स्तर से है।
दुनिया का कोई समाज इस संदर्भ से कटकर विकास नहीं कर पाया है। हम भी अपनी समस्याओं से उलझते हुए उनका समाधान ढूंढ़ने और प्रगति एवं विकास का रास्ता बनाने की जद्दोजहद में हैं और कामयाबी भी पा रहे हैं। इसलिए शिकायतें अपनी जगह भले सही हों, लेकिन खुद और अपने गणतंत्र पर गर्व करने की भी हमारे पास पर्याप्त वजहें हैं।
अगर हम याद करें कि आज जिन बहुत-सी बातों को हम तयशुदा मानते हैं, वो 1947 में उतनी निश्चित नहीं थीं। मसलन, भारत अपनी एकता और अखंडता को कायम रख सकेगा, यहां एक स्थिर व्यवस्था बन सकेगी और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र का पूरी दुनिया के लिए एक मॉडल तैयार हो सकेगा, इन सबका तब सिर्फ सपना ही देखा जा सकता था। लेकिन आज ये सब हमारे सामने साकार रूप में मौजूद हैं। इस गणतंत्र के पूर्वजों ने जिस वैज्ञानिक और आर्थिक संरचना की नींव डाली, उसकी बदौलत भारत आज दुनिया की एक उभरती हुई आर्थिक ताकत है।
जाहिर है, समस्याएं अभी और भी हैं। बल्कि गंभीर समस्याएं हैं। कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जिनसे अक्सर हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। लेकिन यहां गौर करने की बात यह है कि इनमें से बहुत-सी समस्याएं हमारी पुरातन व्यवस्था और लंबी गुलामी का परिणाम हैं। इनका संबंध हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक विकासक्रम के स्तर से है।
दुनिया का कोई समाज इस संदर्भ से कटकर विकास नहीं कर पाया है। हम भी अपनी समस्याओं से उलझते हुए उनका समाधान ढूंढ़ने और प्रगति एवं विकास का रास्ता बनाने की जद्दोजहद में हैं और कामयाबी भी पा रहे हैं। इसलिए शिकायतें अपनी जगह भले सही हों, लेकिन खुद और अपने गणतंत्र पर गर्व करने की भी हमारे पास पर्याप्त वजहें हैं।
wish you Happy repulic day
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