हम कौन हैं, कहाँ से आए थे....
यह प्रश्न प्रत्येक मानव समूह करता है और हर बात को अपने पक्ष में देखना चाहता है. हमारी जाति समूह में भी यह प्रश्न सदियों से पूछा जाता रहा है और जानकार लोग अपनी-अपनी जानकारी के अनुसार उत्तर देते आए हैं. माता-पिता, भाई-बहनों, मित्रों, संबंधियों से यह प्रश्न किया जाता है. कई प्रकार की विद्वत्ता और विवेक की जानकारियाँ मिलती हैं.
विकिपीडिया पर संक्षेप में लिखे मेघवाल और उससे लिंक किए गए अन्य शोधपूर्ण विकिपीडिया आलेख बहुत उपयोगी लगे. ज्यों-ज्यों इन्हें देखता गया हाथ में आए सूत्र आख़िरकार मन से उतरने लगे. मन भर गया. इनमें दी गई जानकारी कई जगह इकतरफ़ा है. परंतु कुछ इमानदार टिप्पणियाँ भी मिलीं जो सत्य का प्रतिनिधित्व करती थीं.
आर्यों के आक्रमण से पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यता या मोहंजो दाड़ो और हड़प्पा सभ्यता का उल्लेख है जिसके निवासी राजा वृत्रा और उसकी प्रजा थी. यह अपने समय की सब से अधिक विकसित सभ्यता थी जिसके निवासी शांति प्रिय थे और छोटे-छोटे शहरों में बसे हुए थे. कृषि और कपड़ा बुनना उनका मुख्य व्यवसाय था. उस समय की जंगली, हिंसक और खुरदरी आर्य जाति का वे मुकाबला नहीं कर सके और पराजित हुए. उनका बुरा समय शुरू हुआ. इसके बाद जो हुआ उसे दोहराने की यहाँ आवश्यकता नहीं. इतना जान लेना बहुत है कि राजा वृत्रा को वृत्रा असुर, अहिमेघ (नाग), आदिमेघ, प्रथम मेघ, मेघ ऋषि आदि कहा गया. वेदों में ऐसा लिखा है. आगे चल कर उसकी कथा से लेकर असुरों की पौराणिक कथाओं, नागवंश उनके राजाओं और उनके बचे-खुचे (तोड़े मरोड़े गए) इतिहास की बिखरी कड़ियाँ मिलती हैं. उनसे एक तस्वीर बनती ज़रूर नज़र आती है. यह तस्वीर ऐसी है जिसे कोई जाति भाई देखना नहीं चाहेगा. वीर मेघ पौराणिक कथाओं की धुँध में आर्यों के साथ हुए युद्धों में वीरोचित मृत्यु को प्राप्त होते दिखाई देते हैं तथापि आक्रमणकारी आर्यों ने उन्हें वीरोचित सम्मान नहीं दिया. यह सम्मान देना उनकी परंपरा और शैली में नहीं था. असुरों, राक्षसों, नागों (हिरण्यकश्यप, हिरण्याक्ष, प्रह्लाद, विरोचन, बाणासुर, महाबलि, रावण असुर, तक्षक, तुष्टा, शेष, वासुकी आदि) के बारे में जो लिखा गया और जो छवियाँ चित्रित की गईं, उनके बारे में सभी जानते हैं. फिर हर युग में जीवन-मूल्य बदलते हैं, इसी लिए ऐसा हुआ. वैसे भी इतिहास में या कथाओं में वही लिखा जाता है जो विजयी लिखवाता है.
इतिहास में उल्लिखित कई राजाओं को मेघवंश के साथ जोड़ कर देखा गया है. वे जिस काल में सत्ता में रहे उसे अंधकार में डूबा युग (dark period) कहा गया या लिख दिया गया कि तत्विषयक जानकारी उपलब्ध नहीं है. यानि इतिहास बदला गया या नष्ट कर दिया गया. ऐसी धुँधली कथाओं और खंडित कर इकतरफ़ा बना दिए गए इतिहास को कितनी देर तक अपनी कथा के तौर पर देखा जा सकता है. अनुचित को देखते जाना अनुचित है. अपनी पुरानी फटी तस्वीर पर खेद जताते जाना और अफ़सोस करना अपने वर्तमान को ख़राब करना है. सच यही है कि समय की ज़रूरत के अनुसार मेघ पहले भी चमकदार मानवीय थे, आज भी निखरे मानवीय हैं. वे पहले भी अच्छे थे, आज भी अच्छे हैं. युद्ध में पराजय के बाद कई सदियों तक जिस घोर ग़रीबी में उन्हें रखा गया उसके कारण उनके मन और शरीर भले ही उस समय प्रभावित हुए हों लेकिन उनकी आत्मा पहले से अधिक प्रकाशित है. अपने मन को ख़राब किए बिनी हम अन्य जातियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर देश की प्रगति के लिए कार्य कर रहे हैं. भविष्य में हमारी और भी सक्रिय भूमिका है
Sunday, December 26, 2010
A short Histry About meghwal Samaj...........
राष्ट्रीय मेघवाल महासंघ अब मेघवाल समाज संघ के नए नाम से पंजीकृत हैं। इसी के साथ इसका विस्तार कई अन्य देशों में हो जाने से यह मेघवाल समाज की सर्वोच्च अन्तर्राष्ट्रीय संस्था हो गई हैं। इसके संस्थापक विद्यावारिधि आचार्य गुरूप्रसाद व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजस्थान के हनुमानसिंह निर्भय हैं।
संघ का मुख्य उद्देश्य एक ही ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के समकक्ष समाज-मेघ,मेघवाल,मेघवंशी,बलाई,राजबलाई,भाम्बी,बुनकर,सूत्रकार,सालवी,ऋषि यानी रिखिया,कबीरपंथी,कबीरपंथी जुलाहा जाटा-मारू-बस्सी,बशिष्ठ आदि विभिन्न नामों से ख्यात मेघवाल समाज को एक सूत्र में पिरोना हैं तथा उनमें परस्पर भावनात्मक एवं संघात्मक एकता स्थापित करना हैं।
मेघवाल समाज संघ के जरिए आचार्य गुरूप्रसाद काफी लंबे समय से देश भर के समाज बंधुओं को एकजुट करने में लगे हुए हैं। जिसमेें उन्हें उल्लेखनीय सफलता हासिल हुई हैं। जब से हनुमानसिंह निर्भय ने कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते कार्यभार संभाला हैं तब से मेघवाल समाज संघ ने राजस्थान तथा अन्य प्रदेशों में दलित संगठनों के साथ मिलकर आंदोलनात्मक एवं संगठनात्मक कामों को शुरू किया हैं,खासतौर से दलितों के भूमि अधिकारों की सुरक्षा तथा अन्याय,उत्पीडऩ,शोषण एवं अत्याचारों से मुक्ति के लिए लोगों को संगठित कर प्रतिकार के लिए तैयार किया जा रहा हैं। सामाजिक न्याय यात्रा भी इसी प्रयास का एक विस्तृत स्वरूप हैं। आचार्यजी व निर्भयजी ने मेघवालजनों से संघ से जुडक़र सामाजिक एकता के इस अभियान को आगे बढ़ाने का आह्वान किया हैं। संपर्क करे-
-आचार्य गुरूप्रसाद,संस्थापक,मेघवाल समाज संघ,प्रधान कार्यालय जी-1-64,उत्तम नगर,स्टेट बैंक के सामने,नई दिल्ली
संघ का मुख्य उद्देश्य एक ही ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के समकक्ष समाज-मेघ,मेघवाल,मेघवंशी,बलाई,राजबलाई,भाम्बी,बुनकर,सूत्रकार,सालवी,ऋषि यानी रिखिया,कबीरपंथी,कबीरपंथी जुलाहा जाटा-मारू-बस्सी,बशिष्ठ आदि विभिन्न नामों से ख्यात मेघवाल समाज को एक सूत्र में पिरोना हैं तथा उनमें परस्पर भावनात्मक एवं संघात्मक एकता स्थापित करना हैं।
मेघवाल समाज संघ के जरिए आचार्य गुरूप्रसाद काफी लंबे समय से देश भर के समाज बंधुओं को एकजुट करने में लगे हुए हैं। जिसमेें उन्हें उल्लेखनीय सफलता हासिल हुई हैं। जब से हनुमानसिंह निर्भय ने कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते कार्यभार संभाला हैं तब से मेघवाल समाज संघ ने राजस्थान तथा अन्य प्रदेशों में दलित संगठनों के साथ मिलकर आंदोलनात्मक एवं संगठनात्मक कामों को शुरू किया हैं,खासतौर से दलितों के भूमि अधिकारों की सुरक्षा तथा अन्याय,उत्पीडऩ,शोषण एवं अत्याचारों से मुक्ति के लिए लोगों को संगठित कर प्रतिकार के लिए तैयार किया जा रहा हैं। सामाजिक न्याय यात्रा भी इसी प्रयास का एक विस्तृत स्वरूप हैं। आचार्यजी व निर्भयजी ने मेघवालजनों से संघ से जुडक़र सामाजिक एकता के इस अभियान को आगे बढ़ाने का आह्वान किया हैं। संपर्क करे-
-आचार्य गुरूप्रसाद,संस्थापक,मेघवाल समाज संघ,प्रधान कार्यालय जी-1-64,उत्तम नगर,स्टेट बैंक के सामने,नई दिल्ली
how can we improve our power..........
Meghwal samaj me jo bhi buraiya ha unhe samapat karne ke liye hume kuch hard kadam uthane padenge...uske liya mughe all meghwal youth ka sath chahiye...
jai maghwal
jai maghwal
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