Mehgwal Youth Power

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Jara Soch Ke to Dekho....

Sunday, December 26, 2010

Meghwal Samaj Histry...................

हम कौन हैं, कहाँ से आए थे....
यह प्रश्न प्रत्येक मानव समूह करता है और हर बात को अपने पक्ष में देखना चाहता है. हमारी जाति समूह में भी यह प्रश्न सदियों से पूछा जाता रहा है और जानकार लोग अपनी-अपनी जानकारी के अनुसार उत्तर देते आए हैं. माता-पिता, भाई-बहनों, मित्रों, संबंधियों से यह प्रश्न किया जाता है. कई प्रकार की विद्वत्ता और विवेक की जानकारियाँ मिलती हैं.
विकिपीडिया पर संक्षेप में लिखे मेघवाल और उससे लिंक किए गए अन्य शोधपूर्ण विकिपीडिया आलेख बहुत उपयोगी लगे. ज्यों-ज्यों इन्हें देखता गया हाथ में आए सूत्र आख़िरकार मन से उतरने लगे. मन भर गया. इनमें दी गई जानकारी कई जगह इकतरफ़ा है. परंतु कुछ इमानदार टिप्पणियाँ भी मिलीं जो सत्य का प्रतिनिधित्व करती थीं.
आर्यों के आक्रमण से पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यता या मोहंजो दाड़ो और हड़प्पा सभ्यता का उल्लेख है जिसके निवासी राजा वृत्रा और उसकी प्रजा थी. यह अपने समय की सब से अधिक विकसित सभ्यता थी जिसके निवासी शांति प्रिय थे और छोटे-छोटे शहरों में बसे हुए थे. कृषि और कपड़ा बुनना उनका मुख्य व्यवसाय था. उस समय की जंगली, हिंसक और खुरदरी आर्य जाति का वे मुकाबला नहीं कर सके और पराजित हुए. उनका बुरा समय शुरू हुआ. इसके बाद जो हुआ उसे दोहराने की यहाँ आवश्यकता नहीं. इतना जान लेना बहुत है कि राजा वृत्रा को वृत्रा असुर, अहिमेघ (नाग), आदिमेघ, प्रथम मेघ, मेघ ऋषि आदि कहा गया. वेदों में ऐसा लिखा है. आगे चल कर उसकी कथा से लेकर असुरों की पौराणिक कथाओं, नागवंश उनके राजाओं और उनके बचे-खुचे (तोड़े मरोड़े गए) इतिहास की बिखरी कड़ियाँ मिलती हैं. उनसे एक तस्वीर बनती ज़रूर नज़र आती है. यह तस्वीर ऐसी है जिसे कोई जाति भाई देखना नहीं चाहेगा. वीर मेघ पौराणिक कथाओं की धुँध में आर्यों के साथ हुए युद्धों में वीरोचित मृत्यु को प्राप्त होते दिखाई देते हैं तथापि आक्रमणकारी आर्यों ने उन्हें वीरोचित सम्मान नहीं दिया. यह सम्मान देना उनकी परंपरा और शैली में नहीं था. असुरों, राक्षसों, नागों (हिरण्यकश्यप, हिरण्याक्ष, प्रह्लाद, विरोचन, बाणासुर, महाबलि, रावण असुर, तक्षक, तुष्टा, शेष, वासुकी आदि) के बारे में जो लिखा गया और जो छवियाँ चित्रित की गईं, उनके बारे में सभी जानते हैं. फिर हर युग में जीवन-मूल्य बदलते हैं, इसी लिए ऐसा हुआ. वैसे भी इतिहास में या कथाओं में वही लिखा जाता है जो विजयी लिखवाता है. 

इतिहास में उल्लिखित कई राजाओं को मेघवंश के साथ जोड़ कर देखा गया है. वे जिस काल में सत्ता में रहे उसे अंधकार में डूबा युग (dark period) कहा गया या लिख दिया गया कि तत्विषयक जानकारी उपलब्ध नहीं है. यानि इतिहास बदला गया या नष्ट कर दिया गया. ऐसी धुँधली कथाओं और खंडित कर इकतरफ़ा बना दिए गए इतिहास को कितनी देर तक अपनी कथा के तौर पर देखा जा सकता है. अनुचित को देखते जाना अनुचित है. अपनी पुरानी फटी तस्वीर पर खेद जताते जाना और अफ़सोस करना अपने वर्तमान को ख़राब करना है. सच यही है कि समय की ज़रूरत के अनुसार मेघ पहले भी चमकदार मानवीय थे, आज भी निखरे मानवीय हैं. वे पहले भी अच्छे थे, आज भी अच्छे हैं. युद्ध में पराजय के बाद कई सदियों तक जिस घोर ग़रीबी में उन्हें रखा गया उसके कारण उनके मन और शरीर भले ही उस समय प्रभावित हुए हों लेकिन उनकी आत्मा पहले से अधिक प्रकाशित है. अपने मन को ख़राब किए बिनी हम अन्य जातियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर देश की प्रगति के लिए कार्य कर रहे हैं. भविष्य में हमारी और भी सक्रिय भूमिका है

4 comments:

  1. प्रिय मुकेश जी, आपने मेघनेट के फॉलोअर बने और आपको मेरी पोस्ट पसंद आई इसके लिए धन्यवाद. अभी बहुत कार्य बाकी है. आपकी युवा शक्ति ने मेघवाल समाज को प्रगति के पथ पर ले जाना है.
    टिप्पणियों के लिए 'word verification' हटा दें. इससे टिप्पणी लिखने वाले को सुविधा होती है. शुभकामनाएँ.

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  2. मेघवाल समाज विषयक ब्लॉगों की संख्या में निरन्तर इजाफा हो रहा हैं। यह निश्चित ही खुशी की बात हैं।

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  3. नववर्ष की ढेरों हार्दिक शुभभावनाएँ.

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